कस्बे के पेचकी बावड़ी क्षेत्र स्थित प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर इन दिनों एक गहन आध्यात्मिक अनुभूति का केंद्र बन गया है। यहां मुनि श्री 108 वैराग्यसागर जी एवं मुनि श्री 108 सुप्रभसागर जी महामुनिराज के दिव्य सान्निध्य से संपूर्ण वातावरण धर्ममय हो गया है। समाजजनों को उनके मंगल प्रवचनों का श्रवण करने का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
समाज अध्यक्ष शिखर चंद्र जैन ने बताया कि विगत कुछ दिनों से मंदिर परिसर में आध्यात्मिक चेतना की लहरें बह रही हैं। श्रद्धालु न केवल प्रवचनों को सुनने आ रहे हैं, बल्कि उन्हें हृदय में आत्मसात कर रहे हैं।
आज के प्रवचन में मुनिश्री ने जीवन की कठिनाइयों और उनसे पार पाने की मनोवैज्ञानिक गहराई से व्याख्या की। उन्होंने कहा, “हवा जब राख को उड़ा देती है, तो अंगारे और तेजस्विता शेष रह जाती है। ठीक उसी प्रकार, जीवन की आँधियाँ जब हमें झकझोरती हैं, तो भीतर का धैर्य, आत्मबल और पुरुषार्थ ही हमें फिर से खड़ा करता है।”
इस गूढ़ विचार ने उपस्थित जनसमूह को भीतर तक स्पर्श किया। कई श्रद्धालुओं की आँखें भर आईं – यह न केवल एक प्रवचन था, बल्कि आत्मा से आत्मा तक पहुंचने वाला संवाद था।
मुनिश्री ने यह भी कहा, “धर्म केवल पूजन नहीं, बल्कि कठिन समय में समता, सहनशीलता और करुणा के साथ खड़े रहना है।” उनके ये वचन सुनकर समस्त वातावरण जैसे मौन हो गया – केवल श्रद्धा की ध्वनि गूंज रही थी।
पूरे आयोजन के दौरान मंदिर परिसर में दिव्यता, अनुशासन और श्रद्धा का अद्भुत समन्वय देखने को मिला। दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन एवं प्रवचन लाभ हेतु पहुंचे और हर चेहरा आत्मिक संतोष से दमक रहा था।
समापन पर श्रद्धालुओं ने मुनिराजों के चरणों में नतमस्तक होकर, उनके वचनों को अपने जीवन का मार्गदर्शन बनाने की प्रार्थना की। यह केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मा को आलोकित करने वाला एक महापर्व बन गया।